ज़ंज़ीबार - East African melting pot of cultures
कोई ८० किमी उत्तर-दक्षिण और २० किमी पूर्ब-पश्चिम की बनावट वाला, मुख्यभूमि अफ़्रीका से ३० किमी पूर्व में स्थित जंज़ीबार द्वीप ६००-७०० सालों से व्यापारिक केन्द्र रहा है । अरब-अफ़्रीकी-पुर्तगाली-भारतीय-अंग्रेज़ कई लोग यहाँ आते आए हैं ।
द्वीप की आबादी की एक झलक:
शेष तंज़निया और केन्या की तरह यहाँ दो बार सरदी-सूखे का मौसम आता है, और यही पर्यटन के हिसाब से लोकप्रिय है । दिसंबर-जनवरी और जुलाई-सितंबर तक के दो भाग । सड़के शांत लेकिन ड्रग की समस्या से परेशान (बंदूक की समस्या से नहीं) । मतलब - या तो झुंड में चलें या अगर अकेले हों तो किसी से कोई बहस-वार्ता न करें । मुख्यतः मुस्लिम आबादी और संस्कार-प्रभाव । मलेरिया, कोलेरा और पीला बुख़ार जैसे रोगों के ख़तरे के कारण गलियों और साधारण स्थानों के खाने से बचने की कोशिश करनी चाहिए ।
देखने लायक जगह -
- स्टोन टाउन - पश्चिमी तट पर बना संकरी गलियों वाला मुहल्ला । यहाँ गलियाँ कंक्रीट की बनी हैं, थोड़े पुराने घर हैं । इन संकरी गलियों में मोटरसाइकिल या स्कूटर मात्र ही चलते हैं, कार नहीं । पश्चिमी तट पर फ़ुरोदीनी पार्क है जहाँ शाम के समय कई बेक-बार्बीक्यू-तंदूरी खान-पान का इंतज़ाम रहता है । लुकमान होटल में भी खाना भरोसेमंद है । यहाँ पर उन्नीसवीं सदी के कुख्यात दास-व्यापार की झलकियाँ भी मौजूद हैं ।
- नुंग्वी बीच (दीघा) - यह एकदम उत्तर में एक गाँव है, जहाँ छोटे-छोटे कई बीच हैं । साथ ही कई गेस्ट-हाउस और होटेल भी । दो तरफ़ समुद्र से घिरा होने और पानी के साफ़ और शांत होने के कारण काफ़ी लुभावना है । गाँव में कोई एटीएम नहीं है, अतः पैसे साथ ही लेकर आवें । रेस्तराँ में काफ़ी पश्चिमी खाना मिलता है । कुछ जगहों पर पुलाव और बिरियानी भी मिलती है, लेकिन स्थानीय स्वाद है - यानि मिर्चविहीन, कम मसालों वाला स्वाद । शाकाहारी खाना खाने के लिए आप इंतजाम कर सकते हैं - मीट नहीं डालने को कहिए । यहाँ कई लोग ड्रग्स (गांजा) लेने के लिए भी इशारा-बात करते रहते हैं, चुपचाप निकल जाने में ही भलाई है ।
- पूर्वी तट - पूर्वी तट पर पाजे और म्गांवे बीच बहुत खाली लेकिन अच्छे हैं । अगर आपको भीड़-भाड़ वाली जगहों से बचना हो लेकिन प्राकृतिक सुंदरता देखनी हो तो यहाँ आएं ।
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नुंग्वी में बने गेस्ट हाउस - समुद्र के ठीक किनारे |
लोग ग़रीब हैं, अतः पैसों की आस में आपको तुरंत रास्ता बताने और मदद करने आ जाएंगे । अगर आपको पैसे नहीं देने हों, या कम देने हों तो "सॉरी" और "नहीं, धन्यवाद" (NO thanks) बोल कर निकल सकते हैं । ये
टिप की मांग करते हैं । लेकिन चक्कर में नहीं फंसातें, बस आपसे पैसे मांगते या ठगते रहते हैं । अपनी समझ और हैसियत से पैसे दें, या समय पर मना कर दें ।
यहाँ आकर पता चला कि
हकुना मटाटा का मतलब "सब ठीक, कोई दिक्कत नहीं" होता है - यह अक्सर इस्तेमाल होने वाला phrase है । इन शब्दों को भी देखिये:
- पेसा Pesa - धन ।
- गारी Gari - कार (गाड़ी) ।
ज़ंज़ीबार का खाना, रंगीन तो है लेकिन भारतीय मसालों की तीव्रता नहीं मिलती । लेकिन फिर भी स्वाद में अच्छे ही हैं । यहाँ पर मिलने वाला इमली का जूस चखने लायक है ।
यहाँ के पेड़े-पौधों में मध्य भारत की झलक मिलती है । आम, नारियल, केले, कटहल, नीम आदि बहुतायत मिलेंगे । और भी कई पेड़ जो ग्रामीण कर्नाटक में मिलते हैं यहाँ दीख जाएंगे । लेकिन पपीता, लीची आदि नहीं मिलते । द्वीप की मिट्टी मुख्यतः दोमट है, लेकिन कहीं-कहीं लाल भी ।
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पेड़-पौधे भारत की तरह ही हैं, लेकिन मौसम के महीने भारत से उल्टा (जुलाई में ठंड) । |
यह द्वीप पिछले ३०० सालों से ओमान साम्राज्य का हिस्सा रहा है, तंज़ानिया (या तेंगेन्यीका) का नहीं , इसलिए एक स्वायत्त क्षेत्र है । यहाँ से ओमानी और अंग्रेज़ कई अफ़्रीकी दासों (ग़ुलामों) को पास के केनया, ज़ांबिया, मलावी, मोजांबिक आदि से लाते थे और बेच देते थे । ये ख़रीदे दास कैरिबियन (वेस्टइंडीज़), अमेरिका, ब्राज़ील में खेतों और घरों में दासता की ज़िंदगी बिताने के लिए भेज दिये जाते थे । इनकी दहला देने वाली निशानी आज भी मौजूद है स्टोन टाउन में । ऐसे घर (१०० वर्गफ़ीट) जिनमें ५० लोगों को भूखे कई दिनों तक रखा जाता था और जो ज़िंदा बच जाते थे, उनको मज़बूत समझा जाता था और फिर बेचा जाता था । बाक़ी या तो मर जाते थे या बीमार हो जाते थे ।
दास व्यापार की झलकियाँ
सबसे पहले ओमानी शासकों ने यहाँ अरब इलाक़े के घरेलू और सैनिक कामों में अफ़्रीक़ा के लोगों को लगाने की सोची । अरबों से अलग दीखने वाले ये लोग मुख्य धारा में बसने के लिए अनुपयुक्त समझे गए और दासों की तरह इस्तेमाल किये जाने लगे । ( इसी विचारधारा के तहत आज भी ओमान-इमारात-सउदी-क़तर-बहरीन-कुवैत आदि देशों में कई भारतीय-पाकिस्तानी-श्रीलंकन-फ़िलीपीनो नागरिक काम की तलाश में आते हैं, लेकिन मुख्य धारा में उनको कभी शामिल नहीं किया जाता । वो न ज़मीन ख़रीद सकते हैं, ना स्थानीय लोगों से शादी कर सकते हैं, ना ही अपनी सांस्कृतिक चीज़ों के लिए कोई ख़ास जगह है उनके पास । ) ख़ैर, जब ये दास (ग़ुलाम) कामगर साबित हुए तब तक पुर्तगाली लोगों ने अफ़्रीका के तटीय इलाक़ों में कई कोठियाँ बना ली । उन्होंने भी अफ़्रीकी लोगों को इस्तेमाल किया, लेकिन जल्द ही पुर्तगाल में दास-व्यापार अवैध घोषित हो गया । इसके कोई २०० सालों बाद आए अंग्रेज़ । इन दो सौ सालों में ओमानी साम्राज्य ने दासों का बहुत व्यापार किया । ज़ांज़ीबार में कई इलाकों से दासों को भेजा जाता था (अंदरूनी छोटे प्रधानों द्वारा, धन के एवज़ में) - और यहाँ से उनको अरब शेख़ ख़रीदते थे ।
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ऐसी कोठरियों में ७५ लोग भरे जाते थे । रोशनी के लिए यही खिड़कियाँ और मल-मूत्र के लिए आने जाने का रास्ता । |
जब अंग्रेज़ आए तो ओमानी शासकों ने अंग्रेज़ों को बेचना शुरु किया, और अंग्रेज़ों ने इन्हें अपने काम पर कैरेबियन, अमेरिका, ब्राज़ील आदि देशों में सस्ते मज़दूरी के लिए उम्रभर की दासता करने ले गए । पहले ओमानियों से ख़रीदे, या खुद इकट्ठा किये ग़ुलाम एक अंधेरी कोठरी में ठूँस कर भरे जाते थे और कई दिनों तक छोड़ दिये जाते थे । इनका एक मास्टर हुआ करता था जो ख़ुद ग़ुलाम था, लेकिन थोड़ा सुविधायुक्त था । तीन दिनों के जो बचते थे उन्हीं को काम करने के लिए मज़बूत समझा जाता था । फिर उनको जहाज़ों के रास्ते नई दुनिया (उत्तरी और दक्षिणी अमेरिका) के लिए ले जाया जाता था । इनमें से कई समुंद्री रास्तों में बीमारियों और दम घुटने से मारे गए, कईयों ने भूख-प्यास से दम तोड़ा तो कुछ जहाज़ों से छलांग लगाकर मर गए । बाद में १८७८ में एक अंग्रेज़ बिशप (चर्च के ज़िला प्रमुख ) ने इसको धार्मिक रूप से प्रतिबंधित कर दिया । हाँलांकि स्थानीय-छोटे रूप से ये फिर भी जारी रहा ।
यह Slave Trade का Museum स्टोन टाउन के कैथेड्रल में दीखता है ।
थोड़ा और
स्टोन टाउन
पश्चिमी तट पर बना संकरी गलियों वाला मुहल्ला । यहाँ गलियाँ कंक्रीट की बनी हैं, लेकिन ऐसे ही दीखने वाले कई भारतीय छोटे शहरों की गलियों में जो दुर्गन्ध पाई जाती है, यहाँ नहीं मिलती । इन संकरी गलियों में साइकिल या स्कूटर मात्र ही चलते हैं, कार नहीं । इसलिए अगर आप कहीं से taxi/cab में आ रहे हों और आपको टाउन के बाहर ही छोड़ दे, तो घबराइयेगा नहीं । क्योंकि कार अंदर नहीं आ सकती । ज़ंज़ीबार कैफ़े हाउस में अच्छा पश्चिमी नाश्ता मिल जाता है । पश्चिमी तट पर फ़ुरोदीनी पार्क है जहाँ शाम के समय कई बेक-बार्बीक्यू-तंदूरी खान-पान का इंतज़ाम रहता है । लुकमान होटल में भी खाना भरोसेमंद है । यहीं पर मुख्य केथेड्रल के परिसर में उन्नीसवीं सदी के कुख्यात दास-व्यापार की झलकियाँ हैं ।
नुंग्वी बीच (दीघा)
यह एकदम उत्तर में एक गाँव है, जहाँ छोटे-छोटे कई बीच हैं । साथ ही कई गेस्ट-हाउस और होटेल भी । यहाँ स्टोन-टाउन से ११६ नंबर की बस में सीधे आया जा सकता है । इस सफ़र में लगभग १.५ घंटे का समय लगता है । दो तरफ़ समुद्र से घिरा होने और पानी के साफ़ होने और शांत होने के कारण काफ़ी लुभावना है । गाँव में कोई एटीएम नहीं है, अतः पैसे साथ ही लेकर आवें । रेस्तराँ में काफ़ी पश्चिमी खाना मिलता है । कुछ जगहों पर पुलाव और बिरियानी भी मिलती है, लेकिन स्थानीय स्वाद है - यानि मिर्चविहीन, कम मसालों वाला स्वाद । शाकाहारी खाना खाने के लिए आप इंतजाम कर सकते हैं - मीट नहीं डालने को कहिए । यहाँ कई लोग ड्रग्स (गांजा) लेने के लिए भी इशारा-बात करते रहते हैं । चुपचाप निकल जाने में ही भलाई है । यहाँ से पास के छोटे द्वीपों के लिए ४-५ घंटों की नाव-सफ़ारी भी मिलती है जो आपको पास के एक द्वीप के क़रीब ले जाती है । वहाँ आप snorkeling कर सकते हैं और उसके बाद एक ज़ंज़ीबार द्वीप-तट पर खाना खिलाती है और फिर वापस ले आती है । पानी का रंग नीचे के पत्थरों की वजह से काफ़ी लुभावना है ।
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नुंग्वी के उत्तर में नाव-विहार मे दीखने वाला समुद्र । |